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नज़्म
नक़्क़ाश पर भी ज़ोर जब आ मुफ़्लिसी करे
सब रंग दम में कर दे मुसव्विर के किर्किरे
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
वो अपनी नाज़ुक हसीन सोचों के शहर में खो के रह गई थी
धनक के सब रंग उस की आँखों में भर गए थे